लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (8) अब पछताए क्या होत, ज़ब चिड़िया चुग गयी खेत ( मुहावरों की दुनिया )
शीर्षक = अब पछताए क्या होत, ज़ब चिड़िया चुग गयी खेत
दीन दयाल जी और मानव काफ़ी देर खेत पर रुके रहे, दादा पोते ने ढेर सारी बाते की और उसके बाद घर की और चल दिए
दीन दयाल जी की जिंदगी में तो मानो बहार ने दस्तक दे दी हो, ज़ब से उनका पोता उनके पास आया था लेकिन कही ना कही उनका मन अपने बेटे से मिलने के लिए बेताब था, उन्हें मानव में अपने बेटे आशीष का अक्स नज़र आता था, मानव को देख उन्हें ऐसा प्रतीत होता जैसे की वो अपने बेटे आशीष को ही खिला रहे हो, उनकी जवानी के दिन और आशीष का बचपना फिर से लोट आया हो
ज़ब आशीष अपने पिता का कहा मानता था, उनकी एक झलक पाने के लिए बेताब रहता था, लेकिन अब इतना समय बीत गया कि उसने उनसे बात तक नही की, उसने कोशिश तक नही की अपने रूठे पिता को मनाने की
या यूं कहे कि अगर उसने कोशिश की भी तो उनकी अना उनके आड़े आती रही, लेकिन अब उन्हें आभास हो चला था कि शायद उसे माफ कर देना ही ठीक रहेगा, वैसे गलती उनकी ही थी शहर में पढ़ लिख कर वो यहाँ कैसे गांव वालों का इलाज करके अपनी डिग्री और अपनी काबलियत दोनों ही बेकार कर देता
जबकी शहर में उसका एक नाम है, पहचान है, जो भी उसने मेहनत की उसका उसे फल मिल रहा है
लेकिन कही ना कही उनके मन में ये ख्याल भी आता है, आखिर कार आज़ वो जो कुछ भी है, वो उनकी और इस गांव की ही तो बदौलत ये गांव ना होता, यहाँ पर उनकी ज़मीन ना होती जिस पर वो किसानी करके फसल ऊगा कर उसे बेचता नही, बेच कर अगर पैसे अपने बेटे की पढ़ाई पर नही खर्च करता तो आज़ वो इतना बड़ा डॉक्टर थोड़ी होता, उसे भी तो ख्याल रखना चाहिए था अपने पिता की बात का मान रखना चाहिए था, भले ही वो कम पैसे कमाता लेकिन कम से कम अपने गांव वालों का इलाज तो कर ही सकता था, उन्हें यूं इस तरह शहर जाकर अपना इलाज तो करवाना नही पड़ता, ज़ब घर का ही डॉक्टर होता तो उन्हें अच्छे से देखता और उनकी तकलीफो को अच्छे से समझता, लेकिन अब क्या फायदा
अपने दादा को सोच के भव सागर में इस तरह डूबा देख मानव ने उनसे पूछ ही लिया " क्या हुआ दादा जी? कहा खो गए, "
"क,, क,,, कही नही,, बस ऐसे ही,,, मन कहा एक जगह टिक पाता है, मैं बस सोच रहा था,, कि कुछ दिन बाद तुम चले जाओगे फिर ना जाने कब आओगे " दीन दयाल जी ने बहाना बनाते हुए कहा
"तो आप भी चलिए ना हमारे साथ, कितना मजा आएगा, मैं रोज़ आपके पास लेट कर कहानियाँ सुना करूंगा, आपको अपने दोस्तों से भी मिलवाऊंगा " मानव ने कहा
"नही बेटा, मैं अगर शहर आ गया तो फिर खेत का और हमारे घर का क्या होगा,, और जिन गाय भैंस का तुम दूध पी रहे हो उनका क्या होगा, कभी सोचा है तुमने " दीन दयाल जी ने कहा
"हम्म्म,, ये तो है,, दादा जी,, लेकिन आप परेशान ना हो,, ज़ब भी मेरी छुट्टियां पड़ेंगे मैं तुरंत यहाँ आ जाया करूंगा, मम्मी के साथ नही तो ड्राइवर अंकल के साथ, आप उदास ना हो, अभी तो मेरे पास काफ़ी दिन है, अभी तो बहुत से मुहावरें रहते है, जिनके ऊपर कहानियाँ बनानी है आपकी मदद से, चलिए तेज तेज घर चलते है, वरना दादी और मम्मी डांट लगा देंगी हम दोनों की " मानव ने कहा
दीनदयाल जी ने उसका माथा चूमा और हस्ते मुस्कुराते उसके साथ घर की और चल दिए
घर आकर उन्होंने हाथ मुँह धोकर दोपहर का खाना खाया और फिर अपने अपने कमरे में आराम करने चले गए
थोड़ी देर बाद अचानक घर के दरवाज़े पर किसी की दस्तक होती है, दस्तक काफ़ी तेज थी इसलिए दीन दयाल जी और सुष्मा जी के साथ साथ राधिका और मानव भी बहार आकर देखते है, कि आखिर इस समय तपती दुपहरिया में कौन आया है
दरवाज़ा खोलने पर एक महिला खड़ी थी, जिसे दीना नाथ जी अच्छे से जानते थे, वो उसे घर के अंदर ले आये, वो रो रही थी और दीना नाथ जी को अपने साथ अपने घर ले गयी, पीछे पीछे सुष्मा जी भी चली गयी, राधिका भी जाना चाहती थी पर सुष्मा जी ने आने से मना कर दिया और पूरी बात घर आकर बताने का कह कर चली गयी, मानव को भी कुछ समझ नही आया, इतने दिनों में उसने आज़ अपने दादा को इस तरह परेशान हालत में देखा था
काफ़ी देर बाद वो दोनों आ जाते है, दीना नाथ जी का उतरा चेहरा देख मालूम पड़ रहा था कि बात कोई अच्छी नही है, सुष्मा जी भी चिंतित लग रही थी, राधिका उन्हें लेकर रसोई घर में चली जाती है और उनसे उस औरत के बारे में पूछती है, सुष्मा जी राधिका को बता देती है जो कुछ भी उस औरत के घर हो रहा था, उसे भी दुख हुआ सुन कर मानव अपने दादा को इस तरह देख खुश नही था, उसे भी जानना था कि आखिर क्यूँ उसके दादा इस तरह उदास है, लेकिन राधिका और उसकी दादी ने अभी उनसे मिलने को मना कर दिया था
सूरज ढलने को था, शाम बस थोड़ी देर में होने को थी, लेकिन दीन दयाल जी कमरे से नही निकले, सब से ज्यादा चिंता मानव को हो रही थी, आखिर कार वो बाहर आये उन्हें देख सब को अच्छा लगा खास कर मानव को
सबने शाम की चाय का आंनद लिया, कहने को तो दीन दयाल जी उन सब के साथ बैठे हुए थे, लेकिन कही ना कही वो किसी गहरी सोच में मुबतिला थे, आखिर कार धीरे धीरे शाम, रात में बदल जाती है और सब खाना खा कर आराम करने चले जाते है,लेकिन मानव अपने दादा के इस तरह उदास होने की वजह जानना चाहता था, इसलिए वो सब के मना करने पर भी उन्ही के पास चला जाता है
और उनसे उस औरत के बारे में पूछता है जो सुबह आयी थी और रो रही थी, जिसके बाद से वो और दादी दुखी हो गए थे
दीन दयाल जी उसकी तरफ देखते और कहते है " बेटा, कभी कभी इंसान चाह कर भी कुछ नही कर पाता है, उसे ऐसा लगता है मानो उसके हाथ बांधे हुए है, वो कुछ करना तो चाहता है, लेकिन कर नही पाता है ,ऐसा ही आज़ मेरे साथ हो रहा है
तुम जानना चाहते हो ना, कि वो औरत कौन थी? और वो रो क्यूँ रही थी? उसके घर से आने के बाद मैं इस तरह उदास क्यूँ था?
तो सुनो बेटा, वो औरत मेरे स्वर्गीय दोस्त की बहु थी, जैसे की तुम्हारी मम्मी हमारी बहु है "
"फिर दादा जी, वो इस तरह रो क्यूँ रही थी? क्या उन्हें कोई तकलीफ थी? क्या अब वो ठीक है?" मानव ने सूखे से मुँह से पूछा
"काश की मैं उसकी परेशानी को ख़त्म कर सकता, लेकिन ऐसा होना अब नामुमकिन है, सिवाय ईश्वर के उसकी परेशानी कोई ख़त्म नही कर सकता
बेटा दरअसल उसका पति एक गंभीर और लाइलाज बीमारी से पीड़ित है, जिसकी वजह वो खुद है, तुमने वो कहावत सुनी होगी अब पछताए क्या होत, ज़ब चिड़िया चुग गयी खेत, अगर नही सुनी तो मैं इसका अर्थ बताता हूँ,
बेटा कभी कभी इंसान कुछ ऐसी गलतियां कर बैठता है, और ज़ब उसे अपनी गलती का अंदाजा होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, वो चाह कर भी गुज़रा वक़्त वापस नही ला सकता उसके पास पछतावे के अलावा कुछ नही होता, इसी लिए बड़े बुजुर्गो ने कहा है, कि अब पछताए क्या होत, ज़ब चिड़िया चुग गयी खेत " दीन दयाल जी ने कहा" दीन दयाल जी ने कहा
"दादा जी, तो क्या आपके दोस्त के बेटे ने भी ऐसा कुछ किया था, क्या उन्हें किसी ने रोका नही था गलती करने से, मैं तो ज़ब कुछ गलत करता हूँ तब मम्मी और पापा रोकते है कभी कभी तो डांट भी लगा देते है " मानव ने पूछा
काश वो भी तुम्हारी तरह डांट पड़ने पर गलती करना छोड़ देता तो आज़ उसका ये अंजाम ना होता जो अब हो रहा है
मेरे हाथो में पला बड़ा, तुम्हारे पापा के साथ खेलने कूदने वाला, वो लड़का जिसे उसका पिता मरने से पहले मेरे हवाले करके गया था, लेकिन ना जाने जैसे जैसे वो बढ़ता गया उसकी संगत गलत लड़को के साथ होती गयी, जहाँ उसने पहले तो तम्बाकू का सेवन करना शुरू किया उसके बाद बीड़ी फिर सीगरेट और उसके बाद शराब को मुँह लगा लिया
कितना समझाया उसे कि ये सब उसके लिए हानिकारक है, लेकिन उसने एक ना सुनी, धीरे धीरे उसे इन सब की लत लग गयी, उसकी विधवा माँ को किसी ने सुझाव दिया की इसकी शादी करदो, औरत का मोह अच्छे अच्छे मोह से पीछा छुड़ा देता है, वो आएगी तो इसे संभाल लेगी, लेकिन ये सोच सबसे घटिया है, कि किसी नशेड़ी, जुआरी आदमी को उसकी पत्नि संभाल लेगी, बल्कि इस तरह दो लोगो की और आगे चल कर अगर वो नही सुधरा तो कई लोगो की जिंदगी ख़राब हो जाती है, हर चीज का इलाज शादी नही होता है, खास कर नशे की लत छुड़ाने का, उसके लिए नशा मुक्ति केंद्र भेजा जाता है ना की मंडप में बैठा कर किसी और की बेटी की जिंदगी नर्क बनाने की तैयारी की जाती है
आखिर कार ज़मीने और घर देख कर किसी ने अपनी बेटी दे ही दी, कुछ महीने तो ठीक ही चला लेकिन जैसे जैसे शादी को दिन ज्यादा होते गए, नशे की और उसके कदम दोबारा बढ़ने लगे और फिर वो जो भी कमाता सब नशे में उड़ा देता, ज़ब तक माँ थी तब तक तो थोड़ा बहुत उसके घर का माहौल सही था, लेकिन उसके मरते ही धीरे धीरे घर का समान बिकने लगा , समय अपनी रफ्तर से चलता रहा, वो बाप बना लेकिन फिर भी नही सुधरा, सब कुछ बेच बाच कर, शराब जुए के हवाले कर मौत की कगार पर खड़ा हो गया
दोनों गुर्दे काम करना छोड़ गए है, अब अपने किये पर पछतावा कर रहा है, ज़ब सारा खेत चिड़िया चुग गयी, मुझे अफ़सोस उसके लिए नही बल्कि उसकी पत्नि और बच्चें के लिए हो रहा है, उसके मरने के बाद उसका ना जाने क्या होगा, कौन कब तक उसका बोझ उठाएगा, कम्बख्त नशे की लत ने सारी जवानी उसकी छीन ली और अब जवानी में ही भगवान के पास जाने की राह पर खड़ा है, मैं अपने दोस्त को क्या मुँह दिखाऊंगा ज़ब वो मुझसे पूछेगा की उसके बेटे की हालत ऐसे कैसे हो गयी, ये दुख मुझे अंदर ही अंदर खा रहा है
अपने दादा को इस तरह देख मानव थोड़ा उदास था, बिना कुछ कहे अपने दादा के सीने से लग गया, दीन दयाल जी भी उसे इस तरह सीने से लगता देखा एक सुकून प्राप्त कर रहे थे
मुहावरों की दुनिया हेतु
Rajeev kumar jha
23-Jan-2023 04:57 PM
Nice
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अदिति झा
21-Jan-2023 10:48 PM
Nice 👍🏼
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Sant kumar sarthi
21-Jan-2023 02:36 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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